Who is Krishna ? (Krishnajamastami)

कृष्ण कौन हैं ?


कृष्ण परम भगवान हैं, कृष्ण का मतलब है जो सबसे अधिक आकर्षक है और सबसे अधिक आनंद देने वाला है, बल्कि आनद की मूर्ति है। कृष्ण परम सत्य हैं, परम भगवान हैं, ऐसा मत सभी शास्त्रों का है और सभी महान आचार्यों का है। ऐसा नहीं है की श्री कृष्ण केवल हिन्दुओं के ही भगवान हैं बल्कि ये वास्तव में सभी  के भगवान हैं इसीलिए भगवान कृष्ण का एक और नाम है, "जगन्नाथ" जिसका मतलब है जगत के नाथ, The Lord of entire Universe. So Krishna is Supreme Personality of God.


जब हम कहते हैं "कृष्ण", तो वो एक ऐसे बच्चे हैं, जिन्हे संभालना मुश्किल है, बेहद शरारती, एक मोहक बांसुरीवादक, एक सुन्दर नर्तक, एक सम्मोहक प्रेमी, एक बहदुर योद्धा, अपने दुश्मनो के निर्मम संहारक, एक ऐसा इंसान जिसने हर घर में एक टूटा दिल छोड़ा, एक चतुर राजनेता, और राजा बनाने वाले एक संपूर्ण सज्जन, सबसे ऊँचें कोटि के योगी, और सबसे रंगीले अवतार, कृष्ण को अलग अलग लोगों ने कई अलग अलग तरीकों से देखा समझा अनुभव किया है।  दुर्योधन के शब्दों में वो एक मुस्कुराता हुआ बदमाश है, अगर कभी कोई  इंसान हुआ हो तो वो खा सकता है, पी सकता है, गा सकता है, लड़ सकता है, नाच सकता है, प्यार कर सकता है, बूढी औरतों के साथ गपशप कर सकता है छोटे बच्चों के साथ खेल सकता है।  कौन कहता है की वो भगवान है।  ये दुर्योधन का नजरिया है।



शकुनी का कहना है की चलो मान लेते हैं की वो भगवान हैं, लेकिन भगवान कर ही क्या सकता है, भगवान् केवल उन भक्तों को खुश कर सकता है जो उसे खुश कर सकतें हैं, उसे भगवन होने दो, मुझे वो पसंद नहीं है, और जो आपको पसंद नहीं है आपको उसकी तारीफ़ करनी चाहिए। यही चालाकी है।


राधा, उनके बचपन की प्रेमिका एक दूध वाली है, गाँव की एक साधारण सी महिला लेकिन अपने जबरदस्त प्रेम और भक्ति के कारण वो इतनी बड़ी हो गयी हैं की आज आप कृष्ण की बात नहीं कर सकते हम कृष्ण-राधे नहीं कह सकते, हम राधे-कृष्ण कहते हैं, वो कहतीं  हैं की कृष्ण मेरे साथ हैं वो हमेशा मेरे साथ हैं, वो चाहे जहां भी हों जिस किसी के भी साथ हों वो फिर भी मेरे साथ हैं। 


अक्रूर( कृष्ण के चाचा ), जो की एक बुद्धिमान और संत जैसे इंसान थे उन्होंने कृष्णा के बारे में अपने अनुभव इस तरह से व्यक्त किया, "जब मै इस विचित्र लड़के (कृष्ण) को देखता हूँ,  तो मुझे उसके चारों और सूर्य, चन्द्रमा और सात सितारे घूमते हुए दिखते हैं, जब वो बोलता है तो ऐसा लगता है, जैसे कि अनंत की आवाज बोल रही है, वही आसरा है, अगर इस दुनिया में कहीं उम्मीद और आसरा है तो वही वो आसरा है। 


शिखंडी, एक पीड़ित इंसान चूंकि वो अपने भीतर एक तरह की अवस्था में फसा हुआ था अपने बचपन से ही वो एक ऐसी आत्मा रहा है जिसने बहुत अत्याचार सहा है तो शिखंडी ने कहा  कृष्ण ने मुझे कभी उम्मीद  नहीं दी, लेकिन जब वे मौजूद होते हैं तो उम्मीद की बयार हर किसी को छूती है। अलग-अलग लोगों ने उनके अलग-अलग पहलू को देखा कुछ के लिए वो भगवान हैं, तो कुछ के लिए वो बदमाश हैं, कुछ के लिए वो एक प्रेमी हैं तो कुछ के लिए वो एक योद्धा हैं, उनके कई रूप हैं। 

 
जब भी कृष्ण की बात की जाती तो उनके बारे में कई गलतफहमियाँ भी सामने आती है, जब हम कृष्ण का नाम लेते हैं तो  ज्यादातर लोग बस मक्खन, बासुरी और लड़कियों के बारे में सोचते हैं, लेकिन हमें समझना चाहिए की मक्खन में उनकी रूचि  सिर्फ 6  या 8 साल की उम्र तक ही थी और लड़िकियों का साथ केवल 16 की उम्र तक था।  16  की उम्र में जब उनके गुरु सांदीपनि ने ये समझाया की उनके जीवन का उद्देश्य क्या है, सबसे पहले उन्होने वृन्दावन छोड़ दिया और कभी वापस नहीं गए, न तो अपने रिश्तेदारों से मिलने और न ही वहां के लड़के लड़कियों से मिलने वहीं उसका अंत हो गया। आज जब हम कृष्ण कहते हैं तो राधेकृष्ण कहते हैं, राधा जी, कृष्ण से पहले आती हैं क्यूंकि उनका प्रेम, उनकी करीबी, उनकी प्रेमलीला ने इस उपमहाद्वीप की पूरी संस्कृति की कल्पना में इस तरह जगह पायी है, की हम कृष्ण-राधे नहीं कहते हैं बल्कि राधे-कृष्णा कहते हैं,लेकिन 16 की उम्र में उन्होंने राधे को आखिरी बार देखा और फिर कभी नहीं देखा और  16की उम्र में जब वो जा रहे थे वो बोले मैं ये बासुरी तुम्हारे लिए बजता हूँ, अब मै जा रहा हूँ और वापस नहीं आऊंगा तो भेंट के रूप में, मैं ये बांसुरी तुम्हे देता हूँ, और अब कभी बांसुरी नहीं बजाऊंगा और उन्होंने कभी नहीं बजायी।
 16 से 21 उम्र तक वो ब्रह्मचारी की तरह जिए जबरदस्त साधना की उसके बाद उनका पूरा जीवन समर्पित था राजनीतिक और आध्यत्मिक प्रक्रिया का मिलन करवाने के लिए इसका अंत तबाही के साथ हुआ इन चीजों की कभी बात नहीं की जाती है उन्होंने उत्तरभारत के मैदानों में 1000 से  ज्यादा  आश्रम बनवाये क्युंकि वो अध्यात्ममिक प्रक्रिया को अलग चीज नहीं बनाना चाहते थे, वो आध्यात्मिक प्रक्रिया को जीवन का हिस्सा बनाना चाहते थे। 
दुर्भाग्य से इसका अंत तबाही के साथ हुआ, कुरुक्छेत्र की तबाही एक भयंकर तबाही  पुरुषों की एक पूरी पीढ़ी खत्म हो गयी पर फिर भी हम उनकी पूजा करते हैं, हर वो चीज जो वो रचना चाहते थे वो असफल हो गयी कुरुक्छेत्र युद्ध के साथ, एक चीज जो उन्होने हर हाल में रोकना चाही वो था ये युद्ध, लेकिन सबसे भयंकर युद्ध हुआ और वो खुद उनके अपने परिजन आपस में लड़े और एक दूसरे को मारा और हम उन्हे भगवन कहते हैं क्यूंकि वे इन  सब के बीच आनंदित थे , वो अछूते थे एक भयंकर सच्चाई एक भयंकर नाटक से जो उनके आस पास  हो रहा था।, पर फिर भी अछूते , इसीलिए हम उन्हें भगवान कहते हैं। 


 


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