They are showing us the way to Deal with this Covid-19 Crisis (International Day of the World's Indigenous Peoples 2020)

कोरोना काल में आशा की राह दिखाते  आदिवासी :



कोरोना महामारी की निराशा और संकट की इस घड़ी में हमारे आदिवासी समुदाय के लोग आशा की नयी संभावनाएं दिखा रहे हैं। As a Technocrat I am also influenced by the data and statistics which are coming through. It says something to us i.e. The balancing of our ecology is the most important and essential thing.

                         भगवान बिरसा मुंडा आदिवासियों के समूह का नेतृत्व करते हुए 


आपदा विपदा, महामारी में आदिवासियों में उसे स्वीकार करने की क्षमता भी है और लचीलापन भी और प्रकृति से जुड़ाव उन्हें मजबूती भी देता है। असली स्वराज, आत्मनिर्भरता, राहत और विभिन्न बिमारियों से लड़ने के लिए आदिवासियों के परंपरागत ज्ञान, जीवन शैली, खानपान संस्कृति, सामाजिक मूल्यों से रास्ते बने हैं। इन रास्तों को संरक्षित करने की जरूरत है, ताकि गरीबी, महामारी से प्रभावी तरीके से  मुकाबला किया जा सके। 

आदिवासी इलाकों में मजबूत सूचना तंत्र, आपसी एकता, समझ, एक निर्णय कर उस पर काम करने की कला और एकजुटता, और उनकी जीवनशैली ने उनको कोविड-19 से बचा कर रखा हुआ है। यहां की वनस्पतियों का उपयोग बुखार, गले में खराश और खांसी दूर करने में किया जाता है। साथ ही ये अपने जिला प्रशासन से  संवाद भी रखतें हैं और सहयोग भी करते हैं। उपनिवेश काल में दुनिया के विभिन्न देशों में सत्ताधारियों ने कृषि और व्यावसायिक मांगों को पूरा करने के लिए वन, पहाड़ का व्यावसायिक उपयोग करने की शुरुवात की थी। प्रकृति की प्रथम संतान आदिवासियों को वन से बेदखल कर उन्हे जीवन और आजीविका के दूसरे रास्ते दिखा दिए थे, लेकिन आदिवासियों के लिए वन और पहाड़ उनकी आजीविका नहीं, वरन जीवन का हिस्सा रहे हैं। 

आदिवासियों ने प्रकृति का साथ नहीं छोड़ा। आज उनकी जीवन शैली, खानपान, मूल्य, परम्पराओं से सीख कर कोविड-19 से मुकाबला करने की बात शुरू हो गयी है। आदिवासियों की संस्कृति और उनके अधिकारों की रक्षा को देखते हुए सयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 1982 में विचार करना शुरू किया। इस सम्बन्ध में इसी वर्ष 9 अगस्त को आदिवासियों के मानवाधिकारों के सम्बन्ध में प्रथम बैठक जेनेवा में हुई। इस तिथि को यादगार बनाने के लिए वर्ष 1995 से अंतर्राष्ट्रीय आदिदिवस मनाने की शुरुवात हुई। संयुक्त राष्ट्र संघ ने अंतर्राष्ट्रीय आदिदिवस 2020 की थीम कोविड-19 Indigenous Peoples Resilience रखा है।


वाग्धारा संस्थान की ओर से कराये गए सर्वे में ये बात सामने आयी कि कोविड-19  की घोषणा के बाद सत्तर हज़ार आदिवासी शहरों से अपने गाँव की ओर लौटे हैं, लकिन एक भी केस पॉजिटिव नहीं आया। संस्था ने इलाके की 101 वनस्पतियों के पोषक तत्त्व की जांच करवाई है। इसमें मालूम पड़ा कि अधिकतर वनस्पतियों में कैल्शियम, आयरन, ज़िंक, सोडियम, पौटेशियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस, मैगनीज, फाइबर, प्रोटीन भरपूर हैं। इन्ही वनस्पतियों के सेवन से उनकी शारीरिक मजबूती है।  
परंपरागत अनाज, सब्जियो, और औषधियों के निरंतर सेवन से आदिवासियों ने अपनी Immunity मजबूत बना लिया है। इस तरह से देश दुनिया में आदिवासी अपने-अपने परंपरागत ज्ञान और शैली से खुद को बचाये हुए हैं। 








आज दुनिया में आदिवासियों के परंपरागत ज्ञान, जीवन शैली, खान पान संस्कृति, सामाजिक मूल्यों से जो रास्ते असली स्वराज, आत्मनिर्भरता, राहत और विभिन्न बीमारियों से लड़ने के लिए बने, उसे संरक्षित  करने की जरूरत है, ताकि गरीबी, बीमारी और  महामारी से प्रभावी तरीके से मुकाबला किया जा सके। गैर आदिवासी भी  उनके रास्तों पर चलने का प्रयास करें। इसी सन्दर्भ में पुनः जांचने, परखने का समय आ गया है ताकि समय के साथ उसे ज्यादा सशक्त किया जा सके। संकटों को पार करने के लिए उनके बनाये गए और बताये गए रास्ते ज्यादा मजबूत साबित हो सकते हैं।  आधुनिक समाज को अहंकार छोड़कर आदिवासियों से सीखना होगा।   

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